Wednesday, 14 October 2020

स्कूल बंद होने से लौटा बचपन होटल पर ,जिम्मेदार मगन

सिद्धार्थ नगर ।कोविड-19 के हाहाकारी प्रभाव का असर स्कूलों पर पडने से बचपन फिर कस्बों, चौराहों मुख्यालयों के होटलों पर लौट चुका है।जिम्मेदार एअर कंडीशनर आफिसों मे बैठ कर बचपन बचाओ, बचपन पढाओ का स्लोगन कभी कभार रट ले रहे हैं । अक्टूबर मे 10 तारीख को समय 12बजे इटवा मे बेसिक शिक्षा मंत्री जिस समय तहसील मे जुटे जर्नलिस्टों के बीच अपने द्वारा कराए गए कार्यो का व्याख्या कर रहे थे उसी समय वहां से थोडी दूर होटल मे गिलास उठाए 12वर्ष का अर्जुन धोने के लिए ले जा रहा था। पूंछने पर कि पढते हो जवाब मिला हां, स्कूल बंद है तो यहां आ गया हूं।डुमरियागंज, बांसी ,इटवा खेसरहा,शोहरतगढ़, नौगढ सहित कई जगहो पर बचपन को होटलों पर ग्राहकों की आवाज पर दौडते देखा जा सकता है । होटल वालो से बात करने पर ठोस जवाब मिलता है कि यहां काम करके इनके घर का खर्चा चल रहा है। छोटे कस्बों में समस्या और भी जटिल है।सरकारी व्यवस्था मे बचपन को मिलने वाली मदद की फाइलें कैद होकर आलमारी मे बंद है।बाहर स्थिति है कि बेरोजगारी, भूख और पारिवारिक जिम्मेदारियों को ढोने के लिए नये उम्र के बच्चे परेशान है।इन होटलो, दुकानों मे बच्चों के कोमल मस्तिष्क को अपराध के तरफ धकेल दिया जाता है।मनरेगा मजदूर से लेकर बिल्डिंग निर्माण या मंडियों मे बचपन के सर पर बोझ नजर आता है।सस्ते श्रम और निरंकुश व्यवस्था का फायदा छोटे दुकानदार से लेकर बडे कारोबारी उठा रहे हैं।भय भूख पलायन का असर बचपन को निगल रहा है।पशु पालन से लेकर बाजारों मे पसीने मे डूबे आजाद देश के गुलाम बच्चे यंत्रवत होकर अपने कार्य मे लगे हैं। बढती जिजीविषा उम्र के बंधन को निगल ले रहा है।खेल के मैदान खेत और मकानो के रूप मे तब्दील हो चुके हैं। अगर कभी कार्यवाही भी हुई तो औपचारिकता तक सीमित रह गया ।इस बारे मे वरिष्ठ समाज सेवक अवधेश दूबे का कहना है कि बचपन लौट कर वापस नहीं आता है माता पिता अभिभावक के साथ जिम्मेदार ध्यान दें।


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