Monday, 30 November 2020

सब्जी दाल के पडे हैं लाले,महंगाई ने छीन लिया मुंह से निवाले

सिद्धार्थनगरः नवम्बर बीत गया परन्तु मंहगाई वहीं है।आम तौर पर सितम्बर मास मे बोई जाने वाली सब्जी अब तक बाजार मे आ जाती हैं जिससे गरीब तबका भी खरीद कर अपना पेट भर लेता था।इस बार मंहगाई की मार इतना जबरदस्त है कि सब्जी के दुकानों पर जाने से डर लगता है। दालों की कीमत नई बुलंदियों को छू रहा है।स्थिति है कि सीमा से सटे पडोसी मुल्क नेपाल से दालों की तस्करी अखबारों की हेड लाइन बन रही है।सब्जियों और दालों की महगाई ने आम नागरिकों को बेदम कर दिया है।बाजार कालाबाजारियों के चुंगल मे है तो जिम्मेदार रात -दिन अपनी छवि चमकाने मे लगे हैं।कोरोना काल मे फैली रिक्तता को भरा नहीं जा सका है।आलू 50 टमाटर50 परवल 80से 100करेला 40से60गोभी30से40 रूपये प्रति किलो बिक रहा है।जनता को बाजार समझने वाला समूह आज हावी हो गया है।हर चीज का दाम बढ गया है,कमाई का क्षेत्र सिमट गया है।सोशल डिस्टेंसिग से जहां रोगों से लडने मे सफलता मिली है वहीं मुद्रा के विभाजन सिद्धांत को और बल मिला है।इस मंहगाई के पीछे की कारणों के बारे मे कुछ लोगों का मानना है कि जब पूरा समाज ही बाजार पर आधारित हो जाएगा तो स्थिति अनियंत्रित हो जाएगा। गांव मे रहकर खेती करने वालों ने सब्जी और दालों का उत्पादन लगभग बंद कर दिया है।इसके पीछे नीलगायों, बछडे और सांडो से नष्ट होती फसले हैं।दूसरे प्रांतो से आने वाली सब्जियों का मूल्य बढना स्वाभाविक है।


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