Saturday, 25 April 2020

भारतीय संस्कृति का महापर्व अक्षय तृतीया : सभ्यता के आइने में

सिद्धार्थ नगर। त्यौहारों के धर्म वैदिक सभ्यता में यूं तो रोज ही रास है रंग है उत्साह के साथ मंगलमय जीवन की अक्षय कामना है पर उन त्यौहारों में विशेषण की संज्ञा के लिए अक्षय तृतीया का विशेष स्थान है।
वैशाख माह के शुक्ल पक्ष के तृतीया तिथि को मनाए जाने वाला महा उत्सव इस बार 25 अप्रैल को 11.50 रात्रि से 26अप्रैल को दोपहर 01 बजकर 22 मिनट रहेगा। हमारे यहां उदया तिथि में त्यौहार मनाया जाता है। सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इस बार यह तिथि रोहिणी नक्षत्र में है। ऐसा माना जाता है कि कोई भी शुभ या महत्वपूर्ण कार्य करने के लिए नक्षत्र देखने की आवश्यकता नहीं होती है
। इस स्वयं सिद्ध मुहूर्त का फल भी अक्षय होता है। शास्त्रों में इस तिथि का अपना अलग महत्व है तो काल गणना में तिथि का प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। भगवान विष्णु का पूजन ब्रम्ह मुहूर्त में करने से अक्षय फल मिलता है।भगवती अन्नपूर्णा देवी का प्रसाद चावल,नमक ,घी, सब्जी, फल,और अंग वस्त्र का दान करने से अक्षय फल प्राप्त होता है।इस दिन विष्णु भगवान के छठे अवतार परशुराम का जन्म हुआ था।देवी भगवती अन्नपूर्णा का जन्म दिवस इसी दिन मनाया जाता है।गंगा जी का भू लोक पर अवतरण अक्षय तृतीया को ही हुआ था। सतयुग और त्रेतायुग का आरंभ और वेदव्यास जी ने महाभारत की रचना इसी दिन प्रारंभ किया था। इसके साथ ही बिहारी जी चरण कमलों का दर्शन करने की मनोकामना अक्षय तृतीया को ही पूरा होता है।लोक जीवन की बात करें तो अक्षय तृतीया से ही खेतों की जुताई शुरू किया जाता है। इस समय मानवीय सभ्यता अदृश्य शत्रु से संघर्ष कर रहा है।इस परिस्थितियों में हमारा उमेश वाणी दैनिक समाचार पत्र परिवार अक्षय तृतीया के शुभ अवसर पर आप सब को शुभकामना देते हुए आशा करते हैं कि नये उत्साह से हम लोग इस महामारी से लड़ कर सभ्यताओं के अस्तित्व की रक्षा करें


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